गुरुवार, 18 अक्टूबर 2018

सूरत सिंह ने भट्टियों से छुड़वाया फतेहगढ़


फतेहगढ़ को भट्टियों के हाथों से छुड़वाने के लिए बीकानेर राज्य की फौज सूरतगढ़ आई। ओर यहां से रावत बहादुर सिंह (रावतसर), रावत पद्मसिंह (जैतपुर), चैन सिंह (वाणासर), सिक्ख टीका सिंह, साणी आसकर्ण आदि ने रात्रि के समय चढ़ाई कर सीढ़ी के सहारे गढ़ में प्रवेश किया। ओर मजबूर होकर गढ़ के भीतर के भट्टियों ने बीकानेर की अधीनता स्वीकार कर ली। इससे फतहगढ़ पर फिर से बीकानेर नरेश महाराजा सूरत सिंह का अधिकार हो गया
। उसके बाद यहां पर सिक्ख टीका सिंह तथा मेहता ज्ञान सिंह को पांच सौ घुड़सवारों के साथ तैनात किया गया। 

25 जनवरी, सन् 1801 ई. को भटनेर से सात कोस दूर स्थित गांव टीबी तथा भैराजका में भी बीकानेर राज्य के थाने स्थापित कर वहां पर बीकानेर की सेना रखी गई। तदनंतर, एक थाना अभोर में भी स्थापित किया गया। इस प्रकार बीकानेर नरेश महाराजा सूरत सिंह, भट्टियों से फतेहगढ़ छुड़ाने तथा आसपास के क्षेत्रों में नए थाणे स्थापित कर पाने में सफल रहा। 

उन दिनों मौजगढ़ में दाउदपुत्र खुदाबख्श का अधिकार था। पीर जानी बहावल खां से उसकी नहीं बनती थी, जिससे बहावल खां ने फौज भेज कर मौजगढ़ पर अधिकार कर लिया। तब खुदाबख्श अपने कुछ लोगों के साथ बीकानेर नरेश महाराजा सूरत सिंह की शरण में चला गया। उसने एकांत में महाराजा के समक्ष अपनी बात रखी उसने निवेदन करने के उपरांत यह कहा कि यदि आप हमारा इलाका हमें वापिस दिलाने में हमारी मदद करें तो हम बदले में सिंध पर आपका अधिकार करा देंगे। महाराजा सूरत सिंह ने जब उसे  सहायता प्रदान करने का वचन दिया तब खुदाबख्स ने फूलड़ा, बल्लर, मीरगढ़, जामगढ़, मारोठ तथा मौजगढ़ पर उसका अधिकार करा देने का वायदा किया। फिर महाराजा सूरत सिंह ने 25 हजार सैनिकों की एक बीकानेरी फौज खुदाबख्श के साथ रवाना की। इस बीकानेरी फौज का नेतृत्व मेहता मंगनीराम कर रहा था। (लगातार)

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